आज आसपास फैली नकारात्मकता के बीच हमारा दिमाग इस कदर बुरा सोचने का आदि हो गया है कि अक्सर हम सामान्य तर्क से भी परहेज कर जाते हैं। प्रेशर कुकर के लिए रबर गैस्केट लेने बीच शहर स्थित एक दुकान पर गया था। दुकान कुछ देर पहले ही खुली लग रही थी। कोई अन्य ग्राहक नहीं था। काउंटर पर बैठे अधेड़ व्यक्ति को मैंने पुराना गैस्केट दिखाते हुए कहा कि इस साइज़ वाला दे दीजिए। उसने पुराना गैस्केट हाथ में लेकर गौर से देखा और फिर दुकान में थोड़ा भीतर की ओर रखी टेबल की तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा कि अभी लड़का नहीं है, आप ही वहाँ से फलां नंबर वाला गैस्केट देखकर उठा लीजिए। मुझे बड़ा अजीब लगा। बंदा खुद उठकर सामान देने के बजाए ग्राहक से कह रहा है कि वहाँ रखा है, ढूंढकर ले लो ! मन ही मन सोचा, “ आलसी कहीं का ! अभी तो दिन शुरू हुआ है, अभी से उठकर काम करना टाल रहा है। पता नहीं ऐसे लोग दुकान खोलकर बैठते ही क्यों हैं। ” आदि आदि। खैर, बहस करने में कोई तुक नज़र न आने पर मैं चुपचाप टेबल के पास गया और बताए गए नंबर वाला गैस्केट ढूंढने लगा। टेबल पर फैले सामान के बीच यह ज़रा मुश्किल था। एक-दो मिनिट बीतते-बीतते पीछे क