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त्योहार आपको कैसा महसूस करा जाते हैं?



त्योहार बीतने के बाद आप खुद को बुझा-बुझा-सा पाते हैं या फिर ऊर्जावान
? इस सवाल का जवाब आपके बारे में बहुत कुछ कह जाता है।

 

क्या त्योहारों के बीतने के ठीक बाद आप अपने भीतर एक रीतापन अनुभव करते हैं या फिर खुद को संतृप्त, समृद्ध महसूस करते हैं? पर्व-उत्सव की खुशियों, उत्साह, उमंग का स्थान उदासी लेती है या संतुष्टि? आप खुद को बुझा-बुझा-सा पाते हैं या फिर ऊर्जावान? इन सवालों के जवाब आपके बारे में बहुत कुछ कह जाते हैं।

पर्व-त्योहार हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखते हैं, अपनों के साथ मिलने-मिलाने का मौका देते हैं, रुटीन से हटकर आनंद के कुछ पल बिताने का न्योता देते हैं। मगर त्योहार बीत जाने पर कई लोग विषाद से ग्रस्त महसूस करते हैं। खुशियाँ मनाने के पल बीत जाने के बाद फिर वही रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लौटने का विचार उन्हें अवसाद से भर देता है। और इस अवसाद से निकलने में उन्हें काफी वक्त लगता है। वहीं ऐसे लोग भी होते हैं, जो पर्व का भरपूर आनंद लेने के बाद नई ऊर्जा से उत्सव-पूर्व के जीवन में लौट आते हैं। त्योहार उन्हें रिचार्ज कर जाते हैं।

आप इन दोनों में से किस श्रेणी में आते हैं, यह त्योहार के प्रति ही नहीं, बल्कि जीवन के प्रति आपका नज़रिया दर्शाता है। यदि आप पहली श्रेणी में आते हैं, तो मान लीजिए कि जीवन के प्रति और यहाँ तक कि उसकी खुशियों के प्रति भी आपका नज़रिया नकारात्मक है। जो मिला, उसके लिए कृतज्ञ होने के बजाए आप जो आकर चला गया, उसका शोकगान करने में यकीन रखते हैं।

वहीं दूसरी श्रेणी में होना बताता है कि आप जीवन के प्रति सकारात्मक और संतुलित रवैया रखते हैं। आप खुशी के पलों को रोक लेने का निरर्थक प्रयत्न करने के बजाए उनके आनंद को अंगीकार कर अपने जीवन को समृद्ध करना जानते हैं।

यदि आप इस दूसरी श्रेणी में हैं, तो आपको बधाई। यदि पहली श्रेणी में हैं, तो यह फैसला आपको करना है कि आप वहीं बने रहना चाहते हैं या फिर पाला बदलने के लिए तैयार हैं…।

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