पर्शियन से चाइनीज़ तक और क्या से क्या तक…। नाम के कंफ्यूजन ने मुझे भाँति-भाँति की पहचान दिलाई है!
शेक्सपीयर बाबा
कह गए हैं कि नाम में क्या धरा है। मुझ जैसों से पूछो, तो जवाब मिलेगा कि नाम में
कंफ्यूजन धरा है। मुझे बचपन ही से इस बात की आदत पड़ गई कि पहली बार अपना नाम
बताते ही सामने वाला दोबारा ज़रूर पूछता और फिर कुछ चकराया हुआ लगता। नाम और सरनेम दोनों चक्कर में डालने वाले। तिस पर मेरा
संबंध ऐसे समुदाय से, जो विलुप्ति की कगार पर है और जिसके बारे में कम से कम हिंदी
पट्टी में न के बराबर लोगों ने ही सुना होता है। कितनी ही बार सरनेम बताने पर जवाब
मिलता, “नहीं, मकान नंबर नहीं, सरनेम बताइए!”
नाम का तो
पूछिए ही मत। कितने ही लोगों ने समझ न आने पर अपनी समझ अनुसार मेरा नाम बदल डाला
है। नतीजा यह कि मुझे रोशन, कौशल, भूषण आदि भी कहा गया है। धुंधला-सा याद है, मैं
बहुत छोटा था तब कोई अंकल मुझे पोशन कहकर भी बुलाते थे। पता नहीं उनका तात्पर्य
हिंदी के “पोषण” से था या अंग्रेजी के “Potion” से!
सर्वथा अनसुने नाम के साथ दिक्कत यह होती है कि अनुमान लगाना असंभव-सा हो जाता
है कि व्यक्ति कौन-सी जात-धर्म वाला है। और हम हिंदुस्तानियों के लिए तो जात-धर्म
किसी के परिचय का बुनियादी हिस्सा होता है। हमें नाम से ही धर्म, जात, गोत्र आदि
ताड़ लेने की आदत होती है। सो मेरा नाम सुनते ही सामने वाला अकसर जात-बिरादरी के
बारे में जानने को उत्सुक हो उठता। मगर चूँकि सीधे-सीधे जात-धर्म का पूछना अशिष्ट
समझा जाता है, सो जिज्ञासा को शिष्टता का जामा पहनाते हुए अगला सवाल किया जाता, “किस तरफ belong करते हैं?” यकीन मानिए,
यह सवाल मुझसे पचासों बार पूछा गया है। पहले मैं थोड़ा चिढ़कर जवाब
देता कि इंदौर को ही belong करता हूँ। बाद में यह जवाब देते हुए मुझे सामने वाले को
थोड़ा और चक्कर में डालने का एक परपीड़क आनंद आने लगा।
यूँ कुछ लोग
शिष्टाचार की औपचारिकता में नहीं भी पड़ते। सो कुछेक मौकों पर पूछने वाले ने नाम
सुनते ही तपाक से यह भी कह डाला है कि “यह कैसा नाम हुआ!”
पिताजी के
ट्रांस्फर के चलते दो साल ग्वालियर में रहना हुआ। वहाँ स्कूल के पहले ही दिन जाने
क्यों प्रिंसिपल सर हमारी क्लास लेने आए। ठेठ पुराने ज़माने के धोती-कुर्त्ताधारी
मास्टरजी की छवि पर खरे उतरते प्रिंसिपल साहब हिंदी पढ़ाते हुए नए विद्यार्थियों
को मन ही मन आंक रहे थे। मुझसे उन्होंने संधियों के प्रकार संबंधी एक सवाल पूछ
लिया। अब हिंदी व्याकरण हो या इंग्लिश ग्रामर, मेरा इनसे ज़रा छत्तीस जैसा ही
आंकड़ा रहा है। मैं उत्तर नहीं दे पाया। प्रिंसिपल सर ने मेरा नाम पूछा। मैंने
बताया। फिर उन्होंने पूछा कि आठवीं कहाँ से पास की। मैंने वह भी बताया। अब बेचारे
सर ज़रा चिंता में पड़ गए। अजीब-से नाम वाला लड़का, कॉन्वेंट में पढ़कर आया है।
क्या पता हिंदी पढ़ना-लिखना भी जानता होगा या नहीं!
उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर देवनागरी में लिखी इबारत की ओर इशारा करते हुए मुझसे पूछ
लिया, “Can you read
that?” आज याद करने पर हँसी आती है मगर उस
वक्त बड़ा अपमानजनक लगा था।
उसी स्कूल में एक अन्य सर थे। यूँ उन्होंने कभी हमारी क्लास को पढ़ाया नहीं
मगर वे किसी ऐसे ओहदे पर थे, जिससे उनका वास्ता सारे विद्यार्थियों से पड़ता था।
नियमित टीचर के न आने पर एक-दो मौकों पर वे हमारी क्लास में पीरियड लेने भी आए थे।
उन्होंने पहली बार मेरा परिचय प्राप्त किया, तो मुझे पारसी समुदाय का जानते ही बोल
पड़े, “अच्छा, आप लोगों के पुरखे तो पर्शिया से आए थे ना!” इसके बाद
उन्हें मेरा नाम कभी याद नहीं रहा। जब भी मुझसे कोई काम होता, मुझे “Yes, you Persian!” कहकर संबोधित करते। दिलचस्प बात यह है कि छात्रों को अनुशासित करने के नाम पर
बात-बेबात छड़ी, डस्टर या हाथ चलाने को तत्पर रहने वाले इन सर का व्यवहार मेरे
प्रति न जाने क्यों हमेशा सौम्य रहा। शायद मेरे पर्शियन पुरखों का प्रताप था…।
कॉलेज के
फर्स्ट ईयर में एक सर रजिस्टर पर नज़रें गढ़ाए अटेंडेंस ले रहे थे। मेरा नंबर आने
पर जैसे ही मैंने “यस सर” कहा, उन्होंने तुरंत गर्दन उठाकर मेरी ओर देखा, फिर बोल पड़े, “अच्छा, आप हो! मैंने रजिस्टर
में नाम देखा था, तो सोचा कि इस साल शायद कोई चाइनीज़ लड़का आया है।” स्कूल-कॉलेज के बाद मैं नौकरी करने लगा, तो एक सहकर्मी मेरा नाम सुनकर पूछ
बैठी, “You are
Christian?” तो कुल मिलाकर मेरे नाम ने मुझे भाँति-भाँति की पहचान दिलाई
है।
नाम सुनकर एक
और सवाल जो उठ खड़ा होता है, वह है इसके अर्थ का। “होशंग का अर्थ क्या होता है?” आम बातचीत से
लेकर जॉब इंटरव्यू तक में मुझसे यह सवाल पूछा गया है। अब अपन ठहरे संकोची जीव, सो
नाम का मतलब बताने में हमेशा संकोच कर गए। किसी से यह कहना कि “मेरे नाम का
मतलब है ज्ञान, बुद्धिमत्ता, चैतन्यता…” क्या
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना नहीं लगेगा? सो
मैं हमेशा यही कहता आया कि अर्थ तो नहीं पता लेकिन प्राचीन ईरान में इस नाम का एक
राजा हुआ था…।
वैसे इसी नाम का एक अन्य राजा भारत में भी हुआ है और उसी से मध्यप्रदेश के एक
शहर का नाम भी पड़ा था, जो अभी कुछ ही दिन पहले बदला गया।
विश्वास कीजिए, इस सबके बावजूद मेरे मन में कभी अपना नाम बदलने का खयाल नहीं
आया…।
(चित्र इंटरनेट से)
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