“अक्षम्य! ऐसा राष्ट्रद्रोह किसी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसे कठोर कारावास दिया जाए।” चौपट राजा क्रोध में तमतमा रहा था।
“क्या करें महाराज,” शाही वज़ीर
बोला, “लगता है राष्ट्रद्रोह अब किसी महामारी की भाँति फैलता जा रहा है।”
“खैर, कार्रवाई शुरू की जाए”, महाराज का
आदेश हुआ। शाही वज़ीर ने पहला आरोपी पेश किया।
“महाराज, यह आदमी कल लोगों से यह कहते हुए देखा
गया कि पता नहीं विकास कहाँ है, अब तो लगता है कि वह कभी नहीं आएगा। एक तो आपके
द्वारा किया जा रहा चौतरफा विकास इसे दिखता नहीं, ऊपर से अनर्गल बोलकर दूसरों को
भी आपके व देश के खिलाफ भड़का रहा था।”
“मगर मैं तो अपने बेटे विकास के बारे में बोल रहा
था! वह साल भर पहले घर से चला गया और तभी से लापता है…” आरोपी बोल
पड़ा।
“खामोश!” चौपट राजा गरजा। “किसने कहा था
तुमसे अपने बेटे का नाम विकास रखने को? उस
बेटे का, जो घर से भाग जाने वाला था? शर्म नहीं आती राष्ट्र को
बदनाम करते हुए? भेज दो इसे कारागार में।”
शाही वज़ीर ने
अगला आरोपी पेश किया। “महाराज, यह व्यक्ति खुद को किसान बताता है। कल शाम बीच
चौराहे पर खड़ा होकर ज़ोर-ज़ोर से बोल रहा था कि मैं अपनी फसल चौपट राजा के मितरों
को नहीं बेचूँगा। एक तो यह महाराज के मित्रों को बदनाम कर स्वयं महाराज को और इस
प्रकार देश को बदनाम कर रहा था, ऊपर से यह जता रहा था मानो अपनी फसल बेचने का निर्णय
लेने का अधिकार इसे है, महाराज को नहीं।”
“हूँह। स्पष्ट तौर पर राष्ट्रद्रोह का मामला बनता
है। डाल दो कारागार में।” चौपट राजा ने फैसला सुनाया।
“अब अगला आरोपी, महाराज”, शाही वज़ीर
ने कार्रवाई आगे बढ़ाई। “यह आदमी पेशे से चिकित्सक है। इसकी जुर्रत देखिए, कल एक
सरकारी अधिकारी जब इसके पास अम्लपित्त की शिकायत लेकर गया, तो इसने कह दिया कि
खाली पेट चायपान करने के कारण आपको यह परेशानी हुई है। एक तो यह पूरी निर्लज्जता से
आक्षेप लगा रहा है कि आपश्री के शासन में लोग भूखे रहते हैं, ऊपर से राष्ट्रीय पेय
को बदनाम कर स्वयं राष्ट्र को बदनाम कर रहा है।”
“अक्षम्य! ऐसा
राष्ट्रद्रोह किसी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसे कठोर कारावास दिया जाए।” चौपट राजा अब
क्रोध में तमतमा रहा था। “अगला आरोपी…” कहते-कहते वह रुक गया और आश्चर्य मिश्रित भाव
से बोला, “अरे! यह तो नन्ही-सी बच्ची दिख रही है।”
“इसकी आयु और मासूम चेहरे पर न जाएं, महाराज”, शाही वज़ीर ने
चेताया।
“क्या किया इसने?” चौपट
राजा ने पूछा।
“महाराज, जैसा कि आप जानते हैं, हमने नागरिकों
में राष्ट्र के प्रति गौरव का भाव भरने के लिए सार्वजनिक स्थलों पर “जय चौपट” के नारे अंकित
करा रखे हैं। यह बालिका, जिसके लिए इसके अभिभावक दावा करते हैं कि यह अभी-अभी
अक्षर बनाना सीखी है, कल नगर के दक्षिण में एक दीवार पर अंकित इस राष्ट्रीय नारे
से अक्षम्य छेड़छाड़ कर बैठी। इसने “जय चौपट” में से आधा “य” मिटा दिया और
उसे “जा चौपट” कर दिया। स्पष्ट रूप से यह महाराज के विरुद्ध तख्तापलट करने के षड़यंत्र में
लिप्त है। इसने अपने घृणित षड़यंत्र को अंतर्राष्ट्रीय आयाम देते हुए राह गुज़रती
एक विदेशी नागरिक को गर्व से अपनी कारस्तानी दिखाई भी। आपसे निवेदन है कि इसे कड़ी
से कड़ी सजा तो दें ही, इसके द्वारा रचे गए अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र की विस्तृत
जाँच का आदेश भी दें।”
“तथास्तु”, चौपट राजा आँखें लाल करते हुए बोला।
“अब अगला आरोपी”, शाही वज़ीर ने कार्रवाई
जारी रखी। “इस गद्दार को तो महाराज पहचान ही गए होंगे। यह वही अधम है जो कल आपकी राजसी
सवारी के नगर भ्रमण के दौरान आपके निकट आकर छींक दिया था। हमने छानबीन कर पता लगा
लिया है कि कल से पहले इसे कोई छींक-वीक नहीं आ रही थी। यह जान-बूझकर महाराज को
संक्रमित कर राष्ट्र को संकट में डालने के उद्देश्य से महाराज के निकट आकर छींका
था।”
“ओह! कैसी-कैसी चालें चल रहे हैं देश के दुश्मन। डाल दो इसे भी कारागार में”, चौपट महाराज
कुछ पीड़ा व्यक्त करते हुए बोले।
इस प्रकार एक
के बाद एक आरोपी पेश होते चले गए और चौपट राजा राष्ट्र के प्रति अपना कर्त्तव्य
निभाते हुए सारे गद्दारों को कारागार में भेजते गए। यूँही शाम हो आई। राजदरबार से
निकलते हुए राजा शाही वज़ीर से बोले, “देशद्रोहियों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही
है। कहीं हम ढील तो नहीं दे रहे?”
“नहीं महाराज, हम पूरी कसावट रख रहे हैं। आप कहें
तो प्रजा को और कस दें।”
“इसके लिए हमारी अनुमति की आवश्यकता नहीं। याद रखो
वज़ीर, प्रजा को कसकर रखो तो ही देश आगे बढ़ता है, अन्यथा बिखर जाता है।”
“आप चिंता न करें महाराज, आपके रहते देश नहीं
बिखरेगा।”
“चिंता तो हमें करनी पड़ रही है, वज़ीर। बात ही
कुछ ऐसी है।” अब चौपट राजा के स्वर में पीड़ा स्पष्ट महसूस की जा सकती थी।
“ऐसी क्या बात है महाराज?” शाही वज़ीर
चिंतित हो उठा।
महाराज ने साथ
चल रहे सिपाहियों को पीछे हटने का इशारा किया और फिर शाही वज़ीर के साथ अकेले आगे
बढ़ते हुए बोले, “हम तुमसे एकांत में यह बात कहना चाहते थे। बात यूँ है कि तुम्हारे-हमारे सारे
प्रयासों के बावजूद शत्रु हमारे निकट आते जा रहे हैं। बीते कई दिनों से हमें आभास
हो रहा है कि कोई हमें और राष्ट्र को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से लगातार हमारा
पीछा कर रहा है। सारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच भी वह हमारे निकट पहुँच जाता है।”
“असंभव, महाराज!” शाही
वज़ीर बोल पड़ा। “आप कहें तो तत्काल आपकी सुरक्षा में दोगुने सिपाही लगा देते हैं।”
“नहीं नहीं, वज़ीर। तुम समझ नहीं रहे हो”, महाराज सिर
हिलाते हुए बोले। “देखो, ठीक इस क्षण भी हम महसूस कर सकते हैं कि वह हमारे पीछे आ रहा है।”
इतना कहते हुए
चौपट राजा पीछे मुड़ा और चीख पड़ा, “देखो, देखो वह रहा! हमने कहा था न! देखो, वह खड़ा है दीवार से सटा हुआ।”
शाही वज़ीर ने
पीछे मुड़कर देखा और भौंचक्क रह गया। आँखे फटी की फटी रह गईं। जबड़ा दाढ़ी समेत
नीचे की ओर लटक गया। यदि सर पर बाल होते, तो वे भी ऊपर को उछल गए होते।
“किंतु महाराज, यह तो आपकी पर…” शाही वज़ीर
बोलते-बोलते रुक गया।
कभी वह थर-थर
काँपते चौपट राजा को देख रहा था और कभी थर-थर काँपती चौपट राजा की परछाई को…।
(प्रतीकात्मक चित्र इंटरनेट से)
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