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चीन में दौड़ता इंदौर का “करामाती डिब्बा”!



एक ही डिब्बा दो अलग-अलग गेज पर कैसे चलेगा? ज़रूर यह कोई खास तरह का डिब्बा होगा। मन में इस खास डिब्बे की डिज़ाइन का खाका खिंचने लगा। ऐसी डिज़ाइन, जिसमें डिब्बे के नीचे मीटर और ब्रॉड गेज के हिसाब से चक्कों के दो सेट लगेंगे।

 

उस समय इंदौर से बंबई (तब उसे बंबई ही कहते थे, मुंबई वह बाद में बनी) के बीच कोई सीधी ट्रेन नहीं चलती थी। खंडवा जाकर वहाँ से मध्य रेलवे की कोई लंबी दूरी की ट्रेन पकड़नी होती थी या फिर रतलाम जाकर पश्चिम रेलवे की लंबी दूरी की ट्रेन। हम रतलाम वाले रूट से जाया करते थे। घर से निकलने से लेकर रतलाम में बंबई वाली ट्रेन में बैठने तक धुकधुकी लगी रहती थी कि कहीं इधर वाली ट्रेन के लेट होने की वजह से उधर वाली ट्रेन छूट न जाए। एक-दो मौकों पर तो रतलाम के मीटर गेज प्लेटफॉर्म से ब्रॉड गेज प्लेटफॉर्म तक सामान (और कुली) सहित दौड़ लगाकर ट्रेन पकड़नी पड़ी थी।

ऐसे में अस्सी के दशक की शुरुआत में खबर आई कि अब इंदौर से बंबई के लिए एक डायरेक्ट डिब्बा जाया करेगा। यह डिब्बा इंदौर से एक ट्रेन में लगेगा और नागदा में उस ट्रेन से काटकर इसे बंबई तरफ जाने वाली ट्रेन में नत्थी कर दिया जाएगा। यह जानकर जी खुश हो गया। वाह! अब कनेक्टिंग ट्रेन छूटने का डर नहीं रहेगा। इंदौर में आराम से ट्रेन में बैठो और सीधे बंबई में उतरो। मगर तभी बाल मन में एक खटका हुआ। इंदौर में मीटर गेज पर रवाना होने वाला डिब्बा नागदा से अचानक ब्रॉड गेज पर कैसे दौड़ने लगेगा? दरअसल सीमित जानकारी (और सीमित यात्राओं) के चलते तब मुझे भ्रम था कि इंदौर में सिर्फ मीटर गेज की ही लाइन है, ब्रॉड गेज तो रतलाम, खंडवा आदि से शुरू होता है।

तो दिमागी घोड़े दौड़ पड़े…। एक ही डिब्बा दो अलग-अलग गेज पर कैसे चलेगा? ज़रूर यह कोई खास तरह का डिब्बा होगा। मन में इस खास डिब्बे की डिज़ाइन का खाका खिंचने लगा। ऐसी डिज़ाइन, जिसमें डिब्बे के नीचे मीटर और ब्रॉड गेज के हिसाब से चक्कों के दो सेट लगेंगे। मीटर गेज पर चलते समय मीटर गेज वाले चक्के घूमेंगे और जैसे ही गाड़ी ब्रॉड गेज पर आएगी, ब्रॉड गेज वाले चक्के घूमने लग जाएंगे। मन को यकीन हो गया कि हाँ, ऐसा ही होगा। तभी तो एक ही डिब्बा इंदौर से सीधे बंबई तक पहुँचा देगा।

खैर, जब पहली बार इस डायरेक्ट डिब्बे से बंबई जाना हुआ, तब सारा भ्रम दूर हो गया। पता चला कि इंदौर में भी ब्रॉड गेज लाइन है और यह डायरेक्ट डिब्बा कोई करामाती चीज़ न होते हुए साधारण डिब्बा ही है, जो इंदौर से बंबई तक ब्रॉड गेज पर ही दौड़ेगा। कुछ समय बाद इंदौर-बंबई के बीच सीधी ट्रेन भी शुरू हो गई। पीछे मुड़कर देखने पर कई बार बाल मन की भोली कल्पनाओं पर हँसी आई कि क्या फंतासी गढ़ी थी- अलग-अलग गेज के लिए चक्कों के अलग-अलग सेट!

फिर कुछ साल पहले टीवी के एक ट्रैवल चैनल पर एक बंदे को चीन घूमते हुए दिखाया जा रहा था। चीन से उसने मंगोलिया का रुख किया, ट्रेन में सफर करते हुए। चीन-मंगोलिया सीमा पर ट्रेन कुछ घंटों के लिए रुक गई। शो प्रस्तुत कर रहे बंदे ने बताया कि इस लंबे स्टॉपेज का कारण केवल कस्टम आदि की औपचारिकताएँ नहीं, एक तकनीकी मसला भी है। वह यह कि चीन और मंगोलिया में ट्रेनें अलग-अलग चौड़ाई वाले गेज की पटरियों पर दौड़ती हैं। सो सीमा पर स्थित स्टेशन पर एक-एक डिब्बे को क्रेन से उठाकर उसके चक्के सीमा पार के गेज के अनुसार एडजस्ट किए जाते हैं, फिर ट्रेन आगे बढ़ती है। वापसी के सफर में यही प्रक्रिया दोहराई जाती है। यह जानकर बचपन की वह करामाती डायरेक्ट डिब्बे वाली कल्पना सहसा याद आ गई। अरे! वह कल्पना इतनी भी बेसिर-पैर की नहीं थी!



हाल ही में एक और खबर पढ़ने में आई। वह यह कि चीन ने एक हाई स्पीड वेरिएबल गेज ट्रेन तैयार कर ली है। यह न सिर्फ बिना रुके, बल्कि 400 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से दौड़ते हुए एक गेज से दूसरे गेज की पटरियों पर शिफ्ट हो सकती है! यानी बचपन की उस कल्पना का और ठोस अनुमोदन! जिज्ञासावश गूगल गुरू का कुछ पल सत्संग किया, तो ज्ञान प्राप्ति हुई कि इस तरह के प्रयोग तो दुनिया के कई देशों में कई दशकों से होते चले आए हैं। ज़्यादातर किसी-न-किसी कारण से नाकाम हुए। कम गति से चलने वाली ट्रेनों में ऐसी टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होती रही है, अब चीन ने इसे हाई स्पीड ट्रेन में भी कर दिखाया है। और हाँ, कनाडा में तो 1860 के दशक में ही ऐसी ट्रेन कुछ समय के लिए चलाई गई थी, जिसे मौसम संबंधी व अन्य समस्याओं के चलते बंद कर दिया गया था…!

वाकई, बाल मन की कल्पनाओं को हल्के में नहीं लेना चाहिए!

(चित्र इंटरनेट से)

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