सारे मंत्री अपने-अपने कयास लगाते हुए चिंता के महासागर में गोते लगा रहे थे कि
आखिर चौपट राजा की दाढ़ी इतनी बढ़ कैसे गई!
चौपट राजा के दरबार में एक अजब-सी बेचैनी पसरी थी। मंत्रियों के मन में मनों
प्रश्न उमड़ रहे थे किंतु होठों पर ताले थे। चक्रवर्ती महाराजाधिराज बीते कुछ समय
से बदले-बदले-से लग रहे थे। उनकी चिर-परिचित दहाड़ अब न के बराबर सुनाई पड़ती थी।
फकीरी का दम भरने वाले सम्राट का माथा चिंता की लकीरों की चुगली करता प्रतीत हो
रहा था। और… और… मुखमंडल पर जहाँ पहले तेज फैला हुआ रहता था, वहाँ अब पसरी हुई
नज़र आ रही थी विस्तृत केश राशि। यूँ महाराजाधिराज हमेशा से दाढ़ी-मूँछ रखते थे
मगर हाल के महीनों में इनकी अनियंत्रित वृद्धि पर प्रजा के साथ-साथ मंत्रियों का
भी ध्यान गया था। सब जानते थे कि महाराज अपनी छवि को लेकर कितने चौकस-चौकन्ने रहते
हैं। यह संभव नहीं था कि वे अचानक इस ओर से लापरवाह हो गए हों। फिर क्या कारण हो
सकता था कि सम्राट अपने चेहरे पर केश राशि को यूँ खुली छूट दे रहे थे? सवाल सबके मन
में घुमड़ रहे थे मगर पूछे कौन? सब जानते थे कि महाराज को प्रश्न
पूछे जाने से सख्त धृणा थी।
महाराज को गूढ़ संकेत देते रहने का शौक था, सो सारे मंत्री अपने-अपने स्तर पर
बढ़ी हुई दाढ़ी के पीछे छुपे संकेत को बूझने का प्रयास कर रहे थे। रक्षा मंत्री को
शक हुआ कि कहीं महाराज की दाढ़ी का फैलना सीमा पर शत्रु सेना के निरंतर फैलाव की
ओर संकेत तो नहीं था?
अर्थ मंत्री को शंका हुई कि कहीं धरा की ओर बढ़ रही दाढ़ी
धराशयन की ओर अग्रसर अर्थव्यवस्था की ओर सम्राट की अप्रसन्नता की सूचक तो नहीं? स्वास्थ्य मंत्री यह सोचकर रुग्णानुभव कर रहे थे कि अवश्य ही लंबी खिंचती शाही
दाढ़ी अनियंत्रित होकर लंबी खिंच चली महामारी की ओर इशारा है। उधर विदेश मंत्री को
यह चिंता सता रही थी कि तमाम पड़ोसी देशों के मुँह फेर लेने से वैराग्य की ओर उन्मुख
हो चले महाराज की मनोव्यथा दर्शा रही है उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी। कुल मिलाकर सारे
मंत्री अपने-अपने कयास लगाते हुए चिंता के महासागर में गोते लगा रहे थे। संभावित
कारण सबके पास थे। कारणों का कमी कतई नहीं थी।
अंततः वही हुआ जो ऐसी परिस्थितियों में हमेशा होता था। सारे मंत्रियों ने
मिलकर शाही वज़ीर से निवेदन किया कि वे सम्राट से बढ़ी हुई दाढ़ी का रहस्य पूछें।
एक वे ही थे जो महाराज से ऐसे प्रश्न पूछ सकते थे। सो एक दिन मंत्रिपरिषद की बैठक
में शाही वज़ीर ने महाराज से पूछ ही लिया, “हे आननग्रंथ अधिपति! आपके मुखमंडल की नई दशा सारे मंत्रिगण को चिंता में डाल रही है। सब जानने को
उत्सुक हैं कि आपकी बढ़ी हुई दाढ़ी कौन-सा गूढ़ संदेश दे रही है। इनकी चिंता दूर
हो तो ये अपने कर्त्तव्य निर्वहन पर ध्यान केंद्रित करें।”
इतना सुनते ही महाराज ने एक लंबी, ठंडी सांस ली। वे जानते थे कि एक-न-एक दिन
यह प्रश्न उनसे पूछा जाएगा और उत्तर देने से बचना कठिन होगा।
शाही वज़ीर ने अपनी बात जारी रखी, “क्या दाढ़ी बढ़ाने के
पीछे कोई धार्मिक-आध्यात्मिक कारण है? किसी
प्रण का पूरा होना? कोई मन्नत? क्या जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर आपने यह ऐतिहासिक कदम उठाया है, जैसा
कि आप करते आए हैं? या फिर इसके पीछे कोई राजनीतिक अथवा कूटनीतिक कारण है? कहीं किसी
चिकित्सकीय कारण से तो महाराज ऐसा नहीं कर रहे ना?”
चौपट राजा ने एक और ठंडी सांस ली
और गला साफ करते हुए बोले, “हाँ, कारण तो है हमारे दाढ़ी बढ़ाने
के पीछे। इससे होने वाले लाभ को देखते हुए हमने यह कदम उठाया है। आशा है, आप सब
समझ ही जाएंगे।”
“बताइए ना महाराज”, शाही वज़ीर बोले, “क्या कारण है आपकी बढ़ी हुई दाढ़ी का?”
चौपट राजा अपने आसन से उठकर जाने को हुए और जाते-जाते एक
वाक्य में उत्तर देते गए- “तिनके तलाशना मुश्किल हो जाता है…।”
(प्रतीकात्मक चित्र इंटरनेट से)
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