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खतरे में चौपट राजा की जान



"क्यों न महाराज के मंच पर नीबू-मिर्ची टांग दी जाए, जिससे प्रजा को आभास हो कि महाराज पर संकट कितना गंभीर है?"

फुर्सत में बैठी प्रजा राजा के लिए हानिकारक होती है। खाली बैठे-बैठे उसे राजा में मीन-मेख दिखाई देने लगती है। इसलिए सफल व सुरक्षित राजा वह है, जो प्रजा को लगातार किसी काम पर लगाए रखे। चौपट राजा ने जब से राजपाट संभाला, तभी से प्रजा को लगातार व्यस्त रखने की व्यवस्था कर रखी थी। कभी प्रजा को कतारों में लगाया, तो कभी करों के गुणा-भाग में झोंक दिया। कभी प्रजा गड़े मुर्दों को लेकर झगड़ी, तो कभी खानपान को लेकर लड़ी। राजा का शासन आराम से चलता रहा। मगर बीते कुछ दिनों से राजा को आसन्न संकट की आहट-सी सुनाई देने लगी थी। उसे शक हो चला था कि प्रजा का उससे मोहभंग होने लगा है, वह राजा के दुश्मनों की बातों में आने लगी है। सो इससे पहले कि पानी सर से गुज़र जाए, चौपट राजा ने कुछ करने की ठानी। उसने तय किया कि वह एक जनसभा कर अपने सबसे भरोसेमंद शस्त्र, अपनी वाणी से प्रजा को फिर अपने पक्ष में खड़ा करेगा। इसी जनसभा की तैयारी को लेकर उसने अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई।
चौपट राजाः आप सब जानते हैं कि हमारे शत्रुओं ने किस तरह हमसे अथाह प्रेम करने वाली प्रजा को हमारे खिलाफ भड़का रखा है। अब समय आ गया है कि हम ईंट का जवाब पत्थर से दें।
वज़ीर-ए-आलाः आप आदेश करें साहेब, कितने पत्थर जुटाने हैं। व्यवस्था हो जाएगी।
चौपट राजाः फालतू बात मत करो। हमारा आशय हमारे भाषण से था। हम प्रजा को बताएंगे कि हमारे विरोधी हमारे विरुद्ध अफवाह फैला रहे हैं, उनके बहकावे में न आएं।
सभी मंत्री एक साथः अति उत्तम विचार, महाराज।
चौपट राजाः हाँ, मगर हमें लगता है कि इतना भर पर्याप्त न होगा। प्रजा हमारे साथ खड़ी हो, इसके लिए उसकी सहानुभूति पाना भी ज़रूरी है। आप लोग सोचकर बताइए कि इसके लिए हमें क्या करना चाहिए।
दरबार में सन्नाटा पसर गया। राजा के मंत्रियों को सोचने की आदत नहीं थी क्योंकि चौपट राज में सोचने वाले अक्सर संकट में पड़ जाते थे। केवल चाणक्यावतार वज़ीर-ए-आला खुलकर सोचते और बोलते थे। वे यूँ ही महाराज के दाहिने हाथ नहीं कहलाते थे। आखिर वे ही बोलेः एक उपाय है, महाराज। क्यों न हम यह अफवाह फैला दें, क्षमा करें, यह चर्चा चलवा दें कि महाराज को जान का खतरा है? खुफिया सूत्रों ने कहा है कि जनसभा में महाराज पर जानलेवा हमला होने की आशंका है?
चौपट राजाः हमें मरवाओगे!
वज़ीरः तौबा हुज़ूर। हम तो बस, अपने कुछ सेवकों से एक दिखावटी हमला कराने की बात कर रहे हैं। अधिक कुछ नहीं, महाराज के भाषण के दौरान वे नारे लगाते हुए मंच की ओर बढ़ेंगे और उन्हें धर लिया जाएगा। बाकी हम कहलवा देंगे कि उनके पास से शस्त्र बरामद हुए आदि-आदि।
राजा के मुखमंडल पर हल्की-सी मुस्कान देख अन्य मंत्रियों ने भी अपनी-अपनी सलाह की आहुति देनी शुरू की।
पहला मंत्रीः क्यों न महाराज के मंच पर नीबू-मिर्ची टांग दी जाए, जिससे प्रजा को आभास हो कि महाराज पर संकट कितना गंभीर है?
दूसरा मंत्रीः हम यह चर्चा भी चलवा सकते हैं कि महाराज पर हमला करने वालों के पास से ऐसे दस्तावेज मिले हैं जिनसे सिद्ध होता है कि वे विदेशी घुसपैठिए थे।
पहली मंत्राणीः हमले का स्वांग करने वालों का चयन सावधानीपूर्वक किया जाए। कहीं वे प्याज-लहसुन खाने वाले न हों।
दूसरी मंत्राणीः पहले उनसे दो-चार बार रिहर्सल करा लेना ठीक रहेगा। मैं जानती हूँ। क्योंकि मैं भी कभी अभिनेत्री थी।
चौपट राजाः आप सबके समर्पण और कर्मठता से हम प्रभावित हुए। मगर हमारा विचार है कि ऐसा कोई छद्म हमला कराने की आवश्यकता नहीं है। केवल हमले की आशंका प्रकट करना ही पर्याप्त होगा।
वज़ीर-ए-आलाः मगर हमले की आशंका के बाद यदि कोई हमला न हुआ तो क्या जनता में विपरीत संदेश नहीं जाएगा?
चौपट राजाः नहीं, हम कहलवा देंगे कि हमारे चाक-चौबंद सुरक्षा तंत्र ने दुश्मनों की चाल नाकाम कर दी। प्रजा प्रभावित हो जाएगी कि जो राजा अपनी इतनी अभेद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है, उसके हाथों में देश भी पूर्ण रूप से सुरक्षित है।
सभी मंत्रीः सत्य वचन।
इसके साथ ही मंत्रिमंडल की बैठक संपन्न हुई। दरबार मंत्रियों के समवेत स्वर से गूंज उठा, चौपट… चौपट… चौपट…!”

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