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Showing posts from December, 2019

Fakhta on the verandah

That corner of the verandah has witnessed the Fakhta cycle of life over and over again for years now. Don’t remember when exactly the Fakhtas first set up their nest in our home but once they did, they really made themselves at home… generations of them! A particular corner of the verandah was their chosen spot, where they built their nest atop the Chameli climber. Eggs were laid, hatched, babies born, learnt to fly and then off they all went – babies, mama and papa. The nest never lay abandoned for too long. A few months later, another Fakhta pair would turn up to start a family. The nest would be refurnished so to speak and off they went again laying eggs, caring for and feeding the babies when they came out etc… That corner of the verandah has witnessed the Fakhta cycle of life over and over again for years now. The Fakhta’s cooing is one of the usual sounds of nature around our house. If they are not on the Chameli, they can be seen basking in the sun on the boundary wal

खतरे में चौपट राजा की जान

"क्यों न महाराज के मंच पर नीबू-मिर्ची टांग दी जाए, जिससे प्रजा को आभास हो कि महाराज पर संकट कितना गंभीर है ?" फुर्सत में बैठी प्रजा राजा के लिए हानिकारक होती है। खाली बैठे-बैठे उसे राजा में मीन-मेख दिखाई देने लगती है। इसलिए सफल व सुरक्षित राजा वह है, जो प्रजा को लगातार किसी काम पर लगाए रखे। चौपट राजा ने जब से राजपाट संभाला, तभी से प्रजा को लगातार व्यस्त रखने की व्यवस्था कर रखी थी। कभी प्रजा को कतारों में लगाया, तो कभी करों के गुणा-भाग में झोंक दिया। कभी प्रजा गड़े मुर्दों को लेकर झगड़ी, तो कभी खानपान को लेकर लड़ी। राजा का शासन आराम से चलता रहा। मगर बीते कुछ दिनों से राजा को आसन्न संकट की आहट-सी सुनाई देने लगी थी। उसे शक हो चला था कि प्रजा का उससे मोहभंग होने लगा है, वह राजा के दुश्मनों की बातों में आने लगी है। सो इससे पहले कि पानी सर से गुज़र जाए, चौपट राजा ने कुछ करने की ठानी। उसने तय किया कि वह एक जनसभा कर अपने सबसे भरोसेमंद शस्त्र, अपनी वाणी से प्रजा को फिर अपने पक्ष में खड़ा करेगा। इसी जनसभा की तैयारी को लेकर उसने अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई। चौपट राजाः आप

चिंता में चौपट राजा

“ हुज़ूर, फसादों से आप और हम कब से चिंतित होने लगे ?  ये तो हमें हमेशा खूब फले हैं। ” चौपट राजा अपने कक्ष में चिंता और गुस्से की मिली-जुली मुद्रा में बैठा था। चिंता हमेशा उसे गुस्सा दिला देती है क्योंकि उसे तो दूसरों को चिंता में डालने की आदत है। ऐसे में यदि कभी यह उसके गले पड़ जाए, तो गुस्सा आना तो लाज़िमी है। तभी शाही वज़ीर का वहाँ आना हुआ। हुज़ूर की मुखमुद्रा देखकर वह क्षण भर को ठिठका, फिर हल्के-से गला खखारते हुए कक्ष में प्रविष्ट हो गया। “ कोई विशेष बात, महाराज ?” “ आओ वज़ीर। कुछ खास नहीं, थोड़ा तनाव-सा महसूस हो रहा था बस। ” “ क्या कह रहे हैं महाराजाधिराज ? तनाव महसूस करें देश के दुश्मन ! ” “ हमें लगा था तुम कहोगे, तनाव महसूस करें आपके दुश्मन। ” “ सेम डिफ्रेंस, महाबली। अब बताइए, सेवक हाज़िर है। ” “ ये जो फसाद चल पड़ा है ना सड़कों पर, विश्वविद्यालयों आदि में… ” “ बस, इतनी-सी बात ? हुज़ूर, फसादों से आप और हम कब से चिंतित होने लगे ? ये तो हमें हमेशा खूब फले हैं। ” “ तुम समझते नहीं, इस बार स्थिति ज़रा अलग है। कुछ करना होगा। ” “ आप चिंता न करें साहेब-ए-