अनिष्ट का भय किस कदर विवेक को हर लेता है, यह देखने के लिए सड़क पर एक बिल्ली दौड़ा दीजिए…। वह लगातार हॉर्न दिए जा रहा था और आगे निकलने को अधीर हो रहा था। मैं धीरे वाहन चलाने के लिए कुख्यात हूँ, फिर चाहे टू व्हीलर हो या फोर व्हीलर, सो ऐसा मेरे साथ अक्सर होता रहता है। ऐसे में मैं जल्द-से-जल्द साइड देकर पीछे आने वाले को ओवरटेक कर आगे निकलने देता हूँ कि जा भई, तू भी खुश रह और मुझे भी शांति से गाड़ी चलाने दे। मगर उस दिन काफी देर तक ऐसा मौका ही नहीं मिल पा रहा था। कभी वह सामने से आ रही किसी गाड़ी के कारण मुझे ओवरटेक नहीं कर पाता, तो कभी मैं रॉन्ग साइड आ रही किसी गाड़ी के कारण उसे साइड नहीं दे पा रहा था। खैर, आखिरकार मौका मिला, मैंने उसे साइड दी और वह फर्राटे से आपनी कार दौड़ाता हुआ मुझे ओवरटेक कर आगे बढ़ गया। मैंने राहत की सांस ली… मगर यह क्या ! ज़रा-सा आगे जाकर ही वह अचानक रुक गया। गाड़ी से कोई उतरा भी नहीं। मुझे समझ नहीं आया कि जो शख्स एक मिनट पहले तक अपनी मंज़िल पर पहुँचने के लिए बेतरह उतावला हो रहा था, वह यूँ ठिठक क्यों गया। तभी मेरी नज़र उसके ठिठकने की वजह पर पड़ी। एक बिल्ली...