हमारे यहाँ लोग
केवल मॉर्निंग वॉक नहीं करते, उसके साथ-साथ दूसरी गतिविधियों को भी अंजाम देते
हैं। एक पंथ दो काज हो जाते हैं, कभी-कभी तो तीन या उससे ज़्यादा भी।
सूरज चाचू की
पहली किरण को रेस में मात देते हुए ये अपने मल्टी-टास्किंग मिशन पर निकल पड़ते
हैं। कुछ की नींद ज़रा देर से खुलती है, तो मिशन की शुरुआत भी ज़रा देर से होती
है। समय भले ही थोड़ा आगे-पीछे हो मगर मिशन के प्रति इनका समर्पण देखते ही बनता
है। कहने को ये मॉर्निंग वॉक के लिए ही निकलते हैं मगर क्या है कि हम लोग
मल्टी-टास्किंग में यकीन रखते हैं। सो हमारे यहाँ लोग केवल मॉर्निंग वॉक नहीं
करते, उसके साथ-साथ दूसरी गतिविधियों को भी अंजाम देते हैं। एक पंथ दो काज हो जाते
हैं, कभी-कभी तो तीन या उससे ज़्यादा भी।
एक होती है
पुष्प प्रेमी बिरादरी। इसके सदस्य आम तौर पर धर्मप्राण जनता से आते हैं। ये कभी
खाली हाथ मॉर्निंग वॉक के लिए नहीं जाते। इनके हाथ में सदा एक थैली होती है और ये
रास्ते में पड़ने वाले तमाम घरों में लगे पेड़-पौधों का इंस्पेक्शन करते चलते हैं।
सुंदर फूल नज़र आते ही ये उसे अपनी थैली के हवाले कर देते हैं। इन लोगों के लिए
मॉर्निंग वॉक दरअसल भगवानजी के लिए फूल चुनने का निमित्त भर होता है।
एक समूह उन
लोगों का होता है, जो वॉकिंग के साथ टॉकिंग अनिवार्य मानते हैं। मुँह चलाए बिना
इनके पैर नहीं चलते। अपनी इस ज़रूरत की पूर्ति के लिए इनके पास दो ऑप्शन होते हैं।
एक तो यह कि ये किसी सैर के साथी की व्यवस्था करें और उसके साथ बकर-बकर करते हुए अपना
सफर पूरा करें। इस ऑप्शन को चुनने वाले आपको घर-दफ्तर, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि
तमाम विषयों पर कमेंटरी करते सुनाई दे जाएँगे। दूसरा विकल्प यह है कि ये कानों में
ईयरफोन डालें, किसी अज़ीज़ को कॉल करें औऱ हो जाएँ शुरू। ये खुद से ही बात करते
प्रतीत होंगे लेकिन दरअसल ये शहर के दूसरे हिस्से या फिर दूसरे ही शहर में मौजूद
दोस्त-रिश्तेदार से वार्तालाप कर रहे होंगे। बहुत संभव है कि कॉल के उस छोर पर
मौजूद व्यक्ति भी इनकी ही तरह मल्टी-टास्किंग मॉर्निंग वॉक में रत हो।
मॉर्निंग
वॉकर्स का एक गुट चलते समय अपने मुँह को तकलीफ न देकर केवल कानों को काम पर लगाता
है। ये अपने मोबाइल, आईपॉड या ऐसे ही किसी उपकरण पर संगीत श्रवण करते हुए कदमताल
करते हैं। अमूमन ये कानों में ईयरफोन लगाए होते हैं मगर इनके कुछ भाई-बंधु और
भगिनियाँ ऐसे भी पाए जाते हैं, जो बिना ईयरफोन ही संगीत श्रवण करते और आसपास वालों
को भी कराते चलते हैं। यूँ सबेरे की इस बेला में अधिकांश लोग भक्ति संगीत का लाभ
लेते हैं मगर कुछ लोग नब्बे के दशक के नदीम-श्रवण टाइप गीतों से भी दिन का आगाज़
करते पाए जाते हैं।
अब आते हैं उस
वर्ग-विशेष पर, जिन्हें हम जीव दया की चलती-फिरती मूर्तियाँ कह सकते हैं। ये रात
की बासी रोटियाँ, ब्रेड या बिस्किट का पैकेट लिए बगैर मॉर्निंग वॉक के लिए नहीं
निकलते। गली के श्वानों को इन मॉर्निंग वॉकर्स का बेसब्री से इंतज़ार रहता है।
उनके नाश्ते का इंतज़ाम हो जाता है और मॉर्निंग वॉकर्स के पुण्य का।
मल्टी-टास्किंग
मॉर्निंग वॉक वाकई एक पंथ मल्टिपल काज का जीता-जागता उदाहरण है।
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