उसने पास आकर पूछा, “क्या तुम मेंबर बनना चाहोगे? बस एक रुपया देना होगा।” इन दिनों एक सदस्यता अभियान की चर्चा है, तो अपने को भी बरसों पुराना एक सदस्यता अभियान याद हो आया। बात तब की है जब अपन नए-नए कॉलेज जाने लगे थे। बिल्कुल कोरे-कच्चे, किताबों और कल्पनाओं की दुनिया से बाहर की “असली” दुनिया से लगभग बेखबर। एक दिन अपनी ही क्लास का, छोटा-सा चश्मा लगाने वाला, छोटे-से कद का लड़का एक-एक सहपाठी के पास जाकर कोई टास्क आगे बढ़ाता-सा दिखाई दिया। पता चला कि वह छात्र संगठन के लिए सदस्य बना रहा है। अपनी भी बारी आई। उसने पास आकर पूछा, “क्या तुम मेंबर बनना चाहोगे? बस एक रुपया देना होगा।” संगठन का नाम भी बताया मगर क्या है कि अपने को दूर-दूर तक छात्र संगठनों के नाम से मतलब नहीं था, सो उसने जो नाम बताया, वह भेजे में दर्ज होने से पहले ही फिसलकर बाहर हो गया। अपन ने तो बस इतना पूछा कि इससे क्या होगा…। इस पर उसने बचकाना-सा, रटा-रटाया जवाब दिया कि इससे ये होगा कि तुम्हारा कोई काम हो तो आसानी से हो जाएगा। तब “ना” कहना अपने को आता नहीं था। टालना या बहाने बनाना तो बिल्कुल भी नहीं। सो, चुपचाप जेब से एक रु...