यूँ तो विकासक्रम में मानव असभ्यता से सभ्यता की ओर चलता आया है मगर आजकल कभी-कभी लगता है कि कहीं यह यात्रा उल्टी दिशा में तो नहीं होने लगी है…। एक घृणित अपराधी और उसके भाई की कैमरों के सामने “ लाइव ” हत्या को पिछले दिनों करोड़ों लोगों ने किसी थ्रिलर फिल्म की मानिंद देखा। साथ ही इसे अंजाम देने वालों की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वाहवाही भी की। हत्या के वीडियो सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को प्रेषित किए गए। इस बात को एक तरफ रख दें कि इस घटना में हताहत दो अपराधी ही नहीं, कानून का शासन भी हुआ। यह देखें के हत्या, फिर चाहे वह किसी की भी हो, को चटखारे लेकर देखा-दिखाया गया। और यह आपने, हमने, हम जैसों ने ही किया है। यह इंसान के तौर पर हमारे बारे में क्या कहता है ? हमारी संवेदनाओं या उनके अभाव के बारे में क्या कहता है ? हमारे इंसान कहलाने के हक के बारे में क्या कहता है ? बहुत पहले की बात नहीं है। एक युवक ने अपनी लिव-इन पार्टनर के टुकड़े-टुकड़े कर फ्रिज में जमा किए और फिर एक-एक टुकड़ा इधर-उधर फेंकता गया। एक महिला ने बेटे के साथ मिलकर अपने पति का यही हश्र किया। माता-पिता अपनी ही युवा बेटी की हत्या कर...