जब भरपूर मीठा खाने वाले दिन शगुन के नाम पर मुँह का स्वाद बिगड़ गया और एक परोक्ष सबक मिला…। स्कूल के ज़माने में यह रिवाज़ था कि जन्मदिन पर पूरी क्लास में बाँटने के लिए टॉफी ले जाई जाती। उस दिन यूनिफॉर्म न पहनने की छूट भी होती। यानी यूनीफॉर्म से हटकर कपड़े पहने विद्यार्थी को देखकर पूरे स्कूल को पता चल जाता कि आज इसका बर्थडे है। मेरा जन्मदिन गर्मी की छुट्टियों के दौरान पड़ता और इस प्रकार मैं इस ‘ रिवाज़ ’ के पालन से हमेशा वंचित रहा। सच कहूँ तो इससे मुझे निराशा कभी नहीं हुई, बल्कि खुशी ही हुई क्योंकि मुझे यह कभी पसंद नहीं रहा कि पूरी दुनिया जाने कि आज मेरा जन्मदिन है। आप इसे मेरी खब्त कह सकते हैं लेकिन मेरा यह मानना रहा है कि मैं कब पैदा हुआ, यह मेरा निजी मामला है, लोगों को इससे क्या लेना-देना ! खैर, स्कूल में तो मेरा जन्मदिन कभी नहीं मना लेकिन घर पर ज़रूर मनता आया। वह भी साल में एक नहीं, दो-दो बार। एक बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार और एक बार पारसी कैलेंडर के अनुसार, जो अंग्रेजी वाले बर्थडे से कुछ दिन पहले आता। यूँ मुख्य जन्मदिन पारसी कैलेंडर वाला ही माना और मनाया जाता। नए कपड...