“ मगर यदि सबको दिन में सोकर रात्रि में काम करना है, तो बिना दीयों के वे कुछ देख कैसे पाएंगे, महाराज ?” शाही वज़ीर ने चिंतित भाव से प्रश्न किया। “ उन्हें कुछ देखने की आवश्यकता ही क्या है ?” चौपट राजा बोल पड़े। “ हम हैं न, हम ही लोगों को बताएंगे कि क्या है और क्या नहीं। प्रजा वही देखेगी, जो हम उसे दिखाएंगे। इससे हमें भी शासन करने में सुविधा होगी और प्रजा का मन भी इधर-उधर राष्ट्र विरोधी बातों में नहीं भटकेगा। ” चौपट राजा ने मंत्रिमंडल की विशेष बैठक बुलाई थी। सारे मंत्री दरबार में एकत्र हो चुके थे। तभी महाराज ने अपने चिर-परिचित ठस्के के साथ प्रवेश किया। मंत्री भी अपने चिर-परिचित अंदाज़ में जयकारा लगाने लगे, “ चौपट राजा की… जय !” “ … जय !” “ … जय !” इतना सुनत े ही अपने सिंहासन की ओर बढ़ रहे चौपट महाराज पल भर को रुक गए और अपने परम प्रिय शाही वज़ीर की ओर उन्मुख होकर बोले, “ इससे याद आया ! तुम्हारा सुपुत्र कैसा है ? खेल-खेल में राजकाज के तौर-तरीके सीख रहा है कि नहीं ?” महाराज के मुखारविंद से अपने सपूत का उल्लेख सुन शाही वज़ीर की आँखें चमचमा उठीं और वे बोल पड़े, ...