अब हमारे शिवाजी महाराज बगीचे में हरियाली के बीच नहीं बिराजेंगे, बल्कि “ किले ” की छाया में खड़े होकर व्यस्त सड़कों से गुज़रता ट्रैफिक निहारा करेंगे। परिवर्तन अपरिहार्य है, इसे स्वीकार करना ही होता है। मगर… कुछ दिन पहले अखबार में एक खबर पढ़कर पुरानी स्मृतियों के द्वार खुल गए। खबर थी, “ शिवाजी प्रतिमा चौराहे पर तैयार हो रहा शिवाजी महाराज का किला ” । बताया गया कि चौराहे के विकास के तहत प्रतिमा को पीछे की ओर शिफ्ट कर उसके पीछे किले का स्वरूप तैयार किया जाएगा। मगर एक बात अनकही रह गई। मेरे लिए और निश्चित ही मेरे जैसे और भी कई लोगों के लिए यह स्थान सिर्फ एक चौराहा या प्रतिमा स्थल कभी नहीं रहा। मेरे लिए इस स्थान की स्मृतियाँ उस बगीचे से जुड़ी रही हैं, जो यहाँ हुआ करता था। हमारे लिए यह कभी भी “ शिवाजी स्टैच्यू ” या “ शिवाजी चौराहा ” नहीं था, हमेशा “ शिवाजी पार्क ” था। साल 1975 में जब हम एमआईजी कॉलोनी से लालाराम नगर शिफ्ट हुए, तब घर के सबसे पास स्थित सार्वजनिक उद्यान यही था। कहने को कॉलोनी में भी बगीचे के लिए जगह चिह्नित थी लेकिन उस तिकोने ज़मीन के टुकड़े में बेशरम की झाड़ियों, व...