Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2021

अब “अंकल” और “बाबूजी” चौंकाते नहीं

सापेक्षता के सिद्धांत को एक नए कोण से समझा गई वह बाल टोली ! और मुझे एहसास हो गया कि मैं अपने “ सबसे छोटे ” वाले दर्जे को “ फॉर ग्रांटेड ” नहीं ले सकता। हौले-हौले मुझे इससे वंचित होना होगा।     दीपावली के बाद वाला दिन था। धोक पड़वा। हम लोग बुआ के यहाँ बैठे गपशप कर रहे थे। तभी पड़ोस वाले घर के बच्चों की टोली बुआ को धोक देने आ पहुँची। बुआ के बाद वे बच्चे वहाँ बैठे अन्य लोगों के भी पैर छूने लगे। मोहल्ले की ही एक अन्य आंटी, पापा, मम्मी, भैया…। तभी अचानक एक नन्ही बच्ची ने मेरे पैर छू लिए ! मैं चौंक पड़ा। उस समय मेरी उम्र 14-15 साल थी, मैं घर में सबसे छोटा था और कोई मेरे पैर छुए, यह बात ही मेरी कल्पना से परे थी। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, एक के बाद एक टोली के सारे सदस्य यंत्रवत मेरे पैर छूते हुए आगे बढ़ गए…। और मैं कहीं भीतर तक हिलकर रह गया…। “ न्यूक्लियर फैमिली ” का सबसे छोटा सदस्य होने के नाते, जबसे होश संभाला, मैंने अपने छोटेपन को स्वीकार कर लिया था। छोटा रहना ही मेरी नियति है, यह मान लिया था। अपने तमाम फायदों और नुकसानों सहित यह मुझे मंज़ूर था। मगर आज एहसास हुआ कि यह दर्जा