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Showing posts from September, 2024

आओ, दीवारों का उत्सव करें

आओ, दीवारों का उत्सव करें  विद्वेष के विषकण से सींचकर धरती पर  दीवारों की फसल लहलहा दें तुम अपनी पहचान का परचम उठाओ, हम अपनी पहचान का तमगा धारें  थामकर अपनी संकुचित पहचानों को, संकीर्णताओं में ही आओ, सुख तलाशें  एका हमें दूषित करता है, चलो आपस में बंट जाएं, छंट जाएं अपनों - परायों के भेद को लेकर  न रहे कोई शक - शुबहा, कोई भ्रम - विभ्रम न छूने पाए हमारी छाया तुम्हें  न स्पर्श हो तुम्हारे वजूद का हमें न तुम्हारे सुख - दुख के छींटे पड़ें हम पर  न हमारी पीड़ा - आनंद का वास्ता हो तुमसे भूल से भी न बन बैठे कोई रिश्ता तुममें, हममें  महफूज़ रहें हम दीवारों के इस ओर, उस ओर तुम अपने खांचों में खुश रहो, हम अपने दड़बों में रहें प्रसन्न इस साझी धरती की छाती पर चलो, दीवारों की लकीरें खींच दें इंसानियत के असहनीय बोझ को भी इन्हीं दीवारों में कहीं चुनवा दें। आओ, दीवारों का उत्सव करें…। (प्रतीकात्मक चित्र इंटरनेट से)