अपने पूरे जीवन में गांधी किसी भी धर्मस्थल में बहुत ही कम गए। अपने इष्ट से जुड़ने के लिए उन्हें कभी किसी धर्मस्थल की ज़रूरत नहीं रही। वे अपने कक्ष में या फिर अपनी कुटिया के बाहर बैठकर प्रार्थना कर लेते थे। धर्म उनके लिए दिखावे की वस्तु नहीं थी। बीते दिनों अयोध्या में भव्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई। देश निहाल हुआ। इस दौरान बहुत-सी बातें कहने-सुनने में आईं। यह होना चाहिए था, वह नहीं होना चाहिए था, यह सही हुआ वह गलत आदि। इस बीच कुछ तत्वों द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम बीच में लाया गया और जताया गया कि जो कुछ हुआ, उनके आदर्शों के अनुरूप ही हुआ। कारण कि गांधी भी राम को मानते थे, राम राज्य की बात करते थे। किसी की आस्था पर कोई आक्षेप नहीं है मगर यहाँ जान लेना ज़रूरी है कि गांधी के राम और गांधी का राम राज्य क्या थे। गांधी सनातनी थे, धार्मिक थे, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। मगर गांधी की धार्मिकता आध्यात्मिक थी, कर्मकांडी नहीं। उन्होंने धर्म के मर्म को अपने जीवन में उतारा, धार्मिक अनुष्ठानों से दूरी बनाए रखी। आपने-हमने गांधी के सैंकड़ो-हज़ारों चित्र ...