धर्म के नाम पर राजनीति हुई, अपराध हुए। … और अब इसके नाम पर सरासर अराजकता की ओर कदम बढ़ते दिख रहे हैं। ऐसे में क्यों उस कोने से कोई आवाज़ नहीं आ रही, जहाँ से राह दिखाने वाली रोशनी की उम्मीद की जाती है ? प्रायमरी स्कूल के समय से ही “ भारत एक कृषि प्रधान देश है ” के साथ-साथ “ भारत एक धर्म प्रधान देश है ” भी सुनता आया हूँ। बड़े होते-होते धर्म को अफीम मानने वालों के तर्क भी सुने और इसे भारतीय समाज को जिलाए रखने वाली प्राणवायु मानने वालों के तर्क भी खूब सुने। व्यक्तिगत निष्कर्ष यह रहा कि हकीकत इन दोनों के बीच कहीं है। यह भी कि “ धर्म ” शब्द का उपयोग जितना आम है, इसके वास्तविक अर्थ को लेकर समझ उतनी ही अस्पष्ट है। मोटे तौर पर लोगों के लिए धर्म का मतलब कर्मकांड और रीति-रिवाज़ ही है। धर्मनिष्ठ या धर्मभीरु समाज होने के चलते कोई आश्चर्य नहीं कि हमारे यहाँ धर्मगुरुओं का प्राचुर्य है। साथ ही, समाज में इन्हें एक विशेष दर्जा प्राप्त है। यूँ अपने-अपने धर्मगुरु के प्रति अपार आस्था और श्रृद्धा रखते हुए अधिकांश लोग यह स्वीकारने से भी गुरेज नहीं करते कि बड़ी संख्या में कथित “ धर्मगुरु ” फर्...