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Showing posts from July, 2021

खट्टा-मीठा फूल और महकती मदर-इन-लॉ!

गाफिल कान और खुराफाती दिमाग कुछ भी रच सकते हैं। ग्रीन कलर के पिल्ले से लेकर खट्टे-मीठे फूल और महकती हुई मदर-इन-लॉ तक, कुछ भी… ।   कहने और सुनने के बीच अक्सर हादसे हो जाते हैं। ये हादसे फिल्मी गीत सुनने में कुछ ज़्यादा ही होते हैं। बचपन में मेरे कानों ने ऐसे हादसों को खूब अंजाम दिया है। कुछ लोग अपने में ही इस कदर खोए रहते हैं कि किसी का कहा हुआ सुनने से ज़्यादा वह सुन लेते हैं जो उन्हें जम जाए। बचपन में मैं भी इन्हीं लोगों में शामिल था और इस आदत से पूरी तरह छुटकारा पा लेने का दावा अब भी नहीं कर सकता। खैर, काफी कुछ विविध भारती और कुछ-कुछ मौके-बेमौके यहाँ-वहाँ बजने वाले लाउडस्पीकरों की बदौलत हिंदी फिल्मी गीत बचपन का अभिन्न अंग रहे। बस, गीत श्रवण के इसी सिलसिले में कभी अपने सीमित शब्द ज्ञान के कारण और कभी असीमित कल्पना शक्ति के चलते हादसे होते रहे। आज याद आ रहे ऐसे ही कुछ हादसे आप भी जान लीजिए…। हरियाला पिल्ला बोला रे मैं बहुत छोटा था जब “ गुड्डी ” का गीत “ बोले रे पपीहरा ” खूब बजा करता था। मैं इसे “Puppy हरा ” समझता था और कभी-कभी सोचता था कि यह हरे रंग का Puppy मुझे क्यों कभी...